Surah Fatiha in Hindi (सूरह फातिहा हिंदी में), मुख्त्लफ
उन्बनात सूरह फातिहा मक्की सूरह है और इसमें सात आयते है।
यह सूरह इब्तदाई दौर में मक्का मे उतरी है, जो कुरान के किरदार से
मिलती-जुलती है। इसी बजह से इसका नाम ((सुरह फातिहा)) रखा गया है।
जिसका मतलब होता है “इब्तदाई सूरह “ यानी शुरू की सुरह।
इसका सूरह फातिहा का मोज्ज्ज़ा ये है कि इसकी सात आयतों में पूरे कुरान मजीद का
खुलासा किया गया है।
और इसमे कुरान का बुनयादी पैगाम: तौहीद, रीसालत तथा आखरत के मौज़ूअ को मुख़्तसर
तौर पर बयान किया गया है।
इसमे अल्लाह की रहमत, उसके वली और इबादत की खूसुसियात बयान की गई है।
Surah Fatiha in Hindi With Tarjuma (सूरह फातिहा हिंदी में तर्जुमा संग)
अऊज़ो बिल्लाहे मिनश शैतानिर रजीम*
पनाह मांगता हूँ मैं अल्लाह की, शैतान मरदूद से
बिस्मिल्ला हिर्रहमान निर्रहीम*
अल्लाह के नाम से शुरु जो बहुत मेहरबान रहमतवाला है
अल्हम्दु लिल्लाहे रब्बिल आलमीन*
सब तारीफ उस अल्लाह के लिए है जो सारे जहान का मालिक है।
अर्रहमान निर्रहीम*
बहुत मेहरबान निहायत रहम वाला है।
मालिके यौमिद्दीन*
इंसाफ के दिन का मालिक है।
इय्याका नअबुदु वइय्याका नस्तईन*
हम तेरी ही इबादत करते हैं और तुझी से मदद चाहते हैं।
इहदिनस सिरातल मुस्तक़ीम*
हमें सीधा रास्ता दिखा।
सिरातल लज़ीना अनअम्ता अलैहिम
उन लोगों का रास्ता जिन पर तूने फ़ज़ल किया।
गै़रिल मग़दूबे अलैहिम वलद दॉल्लीन*
उनका रास्ता नहीं जिन पर तेरा गजब नाज़िल हुआ और न उन लोगों का
रास्ता जो रस्ते से भटक गए।
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Surah Fatiha Hindi Pdf Download
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Surah Fatiha in English Transliteration
Bismillah hir rahman nir raheem
1. In the Name of Allah, the Most Beneficent, the Most
Merciful.
Alhamdulillahi Rabbil ‘aalameen
2. All the praises and thanks be to Allah, the Lord of the 'Alamin
(mankind, jinns and all that exists).
Ar-Rahmaanir-Raheem
3. The Most Beneficent, the Most Merciful.
Maliki Yawmi-Deen
4. The Only Owner (and the Only Ruling Judge) of the Day of Recompense
(i.e. the Day of Resurrection)
iyyaka na’budu wa iyyaka nastaeen
5. You (Alone) we worship, and You (Alone) we ask for help (for each and
everything).
Ihdinas Siraatal Mustaqeem
6. Guide us to the Straight Way
Siraatal lazeena an’amta ‘alaihim ghayril maghdoobi ‘alaihim wa lad daaalleen
7. The Way of those on whom You have bestowed Your Grace, not (the way) of
those who earned Your Anger (such as the Jews), nor of those who went
astray (such as the Christians).
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Surah Fatiha English Image
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Surah Fatiha in Arabic with Urdu Tarjuma
بِسْمِ اللَّـهِ الرَّحْمَـٰنِ الرَّحِيمِ
شروع اللہ کے نام سے جو بڑا مہربان نہایت رحم والا ہے
﴾ 1 ﴿ الْحَمْدُ لِلَّـهِ رَبِّ الْعَالَمِينَ
سب طرح کی تعریف خدا ہی کو (سزاوار) ہے جو تمام مخلوقات کا پروردگار
ہے
﴾ 2 ﴿ الرَّحْمَـٰنِ الرَّحِيمِ
بڑا مہربان نہایت رحم والا
﴾ 3 ﴿ مَالِكِ يَوْمِ الدِّينِ
انصاف کے دن کا حاکم
﴾ 4 ﴿ إِيَّاكَ نَعْبُدُ وَإِيَّاكَ نَسْتَعِينُ
(اے پروردگار)
ہم تیری ہی عبادت کرتے ہیں اور تجھ ہی سے مدد مانگتے ہیں
﴾ 5 ﴿ اهْدِنَا الصِّرَاطَ الْمُسْتَقِيمَ
ہم کو سیدھے رستے چلا
﴾ 7 ﴿ صِرَاطَ الَّذِیْنَ اَنْعَمْتَ عَلَیْهِمْ 6ﴰ غَيْرِ الْمَغْضُوبِ عَلَيْهِمْ وَلَا الضَّالِّينَ
ان لوگوں کے رستے جن پر تو اپنا فضل وکرم کرتا رہا نہ ان کے جن پر غصے
ہوتا رہا اور نہ گمراہوں کے
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Surah Al Fatiha Youtube Video with Urdu Translation
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Surah Fatiha Benefits in Hindi (सूरह फातिहा के हिंदी फायदे)
1. मजमाउल बयान की टिप्पणी में यह बताया गया है कि प्यारे पैगंबर
(सल्ललाहो अलैह बसल्लम) ने इरशाद फरमाया कि;
जो कोई भी इस सूरह की तिलाबत करता है, उसे पूरे कुरान के दो तिहाई (2/3)
पढ़ने का सवाब मिलेगा, और उसे दुनिया के तमाम मोमिन मर्दों और औरतों को
जो सदका देने पर जो सवाब मिलता है उसके बराबर, इस सूरह फातिहा की तिलावत
करने पर सवाब मिलेगा।
2.
प्यारे पैगंबर (सल्ललाहो अलैह बसल्लम) ने एक बार जाबिर बिन अब्दुल्ला
अंसारी से पूछा,
"क्या मुझे आपको एक सूरह सिखाना चाहिए जिसकी पूरे कुरान में कोई अन्य
बराबरी नहीं है?"
जाबिर ने जबाब दिया, "हाँ, और अल्लाह के प्यारे नबी (सल्ललाहो
अलैह बसल्लम), मेरे बालिदैन आप पर फिदया दे सकते हैं।"
तो अल्लाह के प्यारे नबी (सल्ललाहो अलैह बसल्लम) ने उन्हें
सूरह अल-फातिहा
सिखाया। फिर अल्लाह के प्यारे नबी (सल्ललाहो अलैह बसल्लम) ने पूछा,
"जाबिर, क्या मैं आपको इस सूरह के बारे में कुछ बताऊं?"
जाबिर ने जबाब दिया, "हाँ, और अल्लाह के प्यारे नबी (सल्ललाहो
अलैह बसल्लम), मेरे बालिदैन आप पर फिदया दे सकते हैं।"
अल्लाह के प्यारे नबी (सल्ललाहो अलैह बसल्लम) ने कहा,
"यह (सूरह अल-फातिहा) मौत को छोड़कर हर बीमारी का इलाज है।"
3. सूरह फातिहा की नमाज़ में बहुत बड़ी फ़ज़ीलत है, अगर सूरह
फातिहा नही पढ़ी जाए तो नमाज़ अधूरी रहती है।
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Surah Fatiha Ki Fazilat (सुरह फातिहा की फजीलत)
1. हज़रत सैयदना अबू हुरैरा रदी अल्लाह ताला अन्हु फरमाते हैं
कि:
"मैं ने सैयदा-अल-मबलगैन, रहमत-उल-अलमीन सलाल अल्लाह तलैही व सलाम को
फरमाते होए सुना की
"अल्लाह रब उल इज़्ज़त फरमाता है के मैं ने
सूरह फातिहा
को अपने और अपने बंदो के दरमियान दो हिस्सो मैं तकसीम कर दिया है और
मेरे बंदो के लिए वही है जो वो मांगे"…….
2. एक रिवायत में है की
"सूरह फातिहा में आधी सूरह मेरे लिए है और आधी मेरे बंदो के लिए"
जब बंदा "अल्हम्दुलिल्लाह ही रब्बिल आलमीन कहता है तो अल्लाह रब-उल
इज़्ज़त फरमाता है के
"मेरे बन्दे ने मेरी सना बयान की"।
जब बंदा "अर रहमान निर रहीम" कहता है तो अल्लाह रब उल इज़्ज़त फरमाता है के "मेरे बं ने मेरी
बुज़ुर्गि ब्यान की"
जब बंदा "इयाका ना'बुदु वा'याका नस्तीन "कहता है तो अल्लाह रब उल
इज़्ज़त फरमाता है" ये मेरे और मेरे बंदे के दरमियान है और मेरे बंदे
के लिए वही है जो वो मुझसे मांगे"।
Surah Fatiha Se Ilaj(सूरह फातिहा से इलाज़)
बुखारी और मुस्लिम शरीफ़ में लिखा है कि प्यारे नबी हुजू़र सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम और हज़रत सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु तआला अन्हु और फ़ारूक़ रज़ियल्लाहु तआला अन्हु अपनी नमाज़ “अलहम्दोलिल्लाहेरब्बिलआलमीन “यानी सूरह फ़ातिहा की पहली आयत से शुरू करते थे।
तरावीह ( रमज़ान मुबारक में रात की ख़ास (special) {विशेष}नमाज़ ) में जो ख़त्म किया जाता है ! उसमें कहीं एक बार पूरी बिस्मिल्लाह शरीफ ज़ोर से ज़रूर पढ़ी जाए ! ताकि एक आयत बाक़ी न रह जाए।
क़ुरआन शरीफ़ की हर सूरह बिस्मिल्लाह से शुरू की जाए, सिवाय सूरह बराअत या सूरह तौबह के !
सूरह नम्ल में सज्दे की आयत के बाद जो बिस्मिल्लाह आई है ! वह मुस्तक़िल आयत नहीं है ! बल्कि आयत का टुकड़ा है।
इस आयत के साथ ज़रूर पढ़ी जाएगी ! आवाज़ से पढ़ी जाने वाली नमाज़ों में आवाज़ के साथ और खा़मोशी से पढ़ी जाने वाली नमाज़ों में ख़ामोशी से।
हर अच्छे काम की शुरूआत बिस्मिल्लाह पढ़कर करना अच्छी बात है. बुरे काम पर बिस्मिल्लाह पढ़ना मना है।
Surah Fatiha Tafseer in Hindi (सूरतुल फ़ातिहा तफ़्सीर हिंदी में)
इस सूरह फ़ातिहा में अल्लाह तआला की तारीफ़, उसकी बड़ाई, उसकी रहमत, उसका मालिक होना, उससे इबादत, अच्छाई, हिदायत, हर तरह की मदद तलब करना,
दुआ मांगने का तरीक़ा, अच्छे लोगों की तरह रहने और बुरे लोगों से दूर रहने, दुनिया की ज़िन्दगी का ख़ातिमा, अच्छाई और बुराई के हिसाब के दिन का साफ़ साफ़ बयान है.
हम्द यानि अल्लाह की बड़ाई बयान करना….
हर काम की शुरूआत में बिस्मिल्लाह की तरह अल्लाह की बड़ाई का बयान भी ज़रूरी है. कभी अल्लाह की तारीफ़ और उसकी बड़ाई का बयान अनिवार्य या वाजिब होता है।
जैसे जुमे के ख़ुत्बे में, कभी मुस्तहब यानी अच्छा होता है ! जैसे निकाह के ख़ुत्बे में या दुआ में या किसी अहम काम में और हर खाने पीने के बाद ! कभी सुन्नते मुअक्कदा ( यानि नबी का वह तरीक़ा जिसे अपनाने की ताकीद आई हो।) जैसे छींक आने के बाद। ( तहतावी )
“रब्बिल आलमीन“
( मतलब मालकि सारे जहां वालों का ) में इस बात की तरफ इशारा है कि सारी कायनात या पूरी सृष्टि ( यानी की जमीं आसमान सूरज चाँद पानी हवा हर शै पुरे ब्रहमांड की ) अल्लाह की बनाई हुई है ! ओर इसमें जो कुछ है वह सब अल्लाह ही की मोहताज ( निर्भर ){depend} है।
और अल्लाह तआला हमेशा से है ! ओर हमेशा के लिये है ! ज़िन्दगी और मौत के जो पैमाने हमने बना रखे हैं।अल्लाह उन सबसे पाक है, वह क़ुदरत वाला है।
”रब्बिल आलमीन” के दो शब्दों (two words) में अल्लाह से तअल्लुक़ रखने वाली हमारी जानकारी की सारी मन्ज़िलें तय हो गई।
“मालिके यौमिद्दीन”
( मतलब इन्साफ वाले दिन का मालिक ) में यह बता दिया गया। कि अल्लाह के सिवा कोई इबादत के लायक़ नहीं है।
क्योंकि सब उसकी मिल्क में है और जो ममलूक यानी मिल्क में होता है उसे पूजा नहीं जा सकता।
इसी से मालूम हुआ कि दुनिया कर्म की धरती है और इसके लिये एक आख़िरत यानी अन्त है।
दुनिया के खत्म होने के बाद ( मतलब क़यामत या प्रलय के बाद ) एक दिन जज़ा यानी बदले या हिसाब का है। इससे पुनर्जन्म का सिद्धान्त या नज़रिया ग़लत साबित हो गया।
“इय्याका नअबुदु”
( मतलब की हम तेरी ही इबादत करे या हम तुझी को पूजें ) अल्लाह की ज़ात और उसकी खूबियों के बयान के बाद यह फ़रमाना इशारा करता है।
कि आदमी का अक़ीदा ( यकीन ) उसके कर्म से उपर है। और इबादत या पूजा पाठ का क़ुबूल किया जाना अक़ीदे की अच्छाई पर है।
इस आयत में मूर्ति पूजा यानि शिर्क का भी रद है। कि अल्लाह तआला के सिवा इबादत किसी के लिये नहीं हो सकती।
“वइय्याका नस्तईन”
( मतलब और तुझी से मदद चाहें ) में यह सिखाया गया कि मदद चाहना।
चाहे किसी माध्यम या जरिये से हो। या फिर सीधे सीधे या डायरैक्ट, हर तरह अल्लाह तआला के साथ ख़ास है।सच्चा मदद करने वाला वही है।
बाक़ि मदद के जो ज़रिये या माध्यम है वो सब अल्लाह ही की मदद के प्रतीक या निशान है। बन्दे को चाहिये कि अपने पैदा करने वाले पर नज़र रखे और हर चीज़ में उसी के दस्ते क़ुदरत को काम करता हुआ माने।
इससे यह समझना कि अल्लाह के नबियों और वलियों से मदद चाहना शिर्क है ! ऐसा समझना ग़लत है क्योंकि जो लोग अल्लाह के क़रीबी और ख़ास बन्दे है। उनकी इमदाद दर अस्ल अल्लाह ही की मदद है।
अगर इस आयत के वो मानी होते जो वहाबियों ने समझे तो क़ुरआन शरीफ़ में “अईनूनी बि क़ुव्वतिन” और “इस्तईनू बिस सब्रे वसल्लाह” क्यों आता, और हदीसों में अल्लाह वालों से मदद चाहने की तालीम क्यों दी जाती।
“इहदिनस सिरातल मुस्तक़ीम”
( मतलब हमको सीधा रास्ता चला ) इसमें अल्लाह (Allah) की ज़ात और
उसकी ख़ूबियों की पहचान के बाद उसकी इबादत ( यानी अल्लाह की इबादत ), उसके बाद दुआ की तालीम दी गई है।
इससे यह मालूम हुआ कि बन्दे को इबादत के बाद दुआ (Prayer)में लगा रहना चाहिये. मतलब नमाज़ के बाद दुआ करना करते रहना चाहिए।
हदीस शरीफ़ में भी नमाज़ के बाद दुआ की तालीम ( शिक्षा ) दी गई है।
( तिबरानी और बेहिक़ी )
सिराते मुस्तक़ीम
सिराते मुस्तक़ीम का मतलब इस्लाम या क़ुरआन नबीये करीम हुजू़र सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम का रहन सहन या हुज़ूर या हुज़ूर के घर वाले और साथी हैं। इससे साबित होता है कि सिराते मुस्तक़ीम यानी सीधा रास्ता अहले सुन्नत का तरीक़ा है।
जो हुज़ूर नबीये करीम सल्लाहो अलैहे वसल्लम के घराने वालों, उनके साथी और सुन्नत व क़ुरआन और मुस्लिम जगत सबको मानते हैं।
“सिरातल लज़ीना अनअम्ता अलैहिम”
( मतलब रास्ता उनका जिन पर तुने एहसान किया ) यह पहले वाले वाक्य या जुमले की तफ़सील यानी विवरण है कि सिराते मुस्तक़ीम से मुसलमानों का तरीक़ा मुराद है। इससे बहुत सी बातों का हल निकलता है कि जिन बातों पर बुज़ुर्गों ने अमल किया वही सीधा रास्ता की तारीफ़ में आता है।
“गै़रिल मग़दूबे अलैहिम वलद दॉल्लीन “
( मतलब न उनका जिन पर ग़ज़ब हुआ और न बहके हुओ का ) इसमें हिदायत दी गई है कि सच्चाई की तलाश करने वालों को अल्लाह के दुश्मनों से दूर रहना चाहिये।
और उनके रास्ते, रस्मों और रहन-सहन के तरीक़े से परहेज़ रखना ज़रूरी है। हदीस की किताब ( Book of hadith ) तिरमिजी़ में आया है कि “मग़दूबे अलैहिम” यहूदियों और “दॉल्लीन” इसाईयों के लिये आया है।
सूरह फ़ातिहा के ख़त्म पर “आमीन” कहना सुन्नत यानी नबीये करीम का तरीक़ा है, “आमीन” के मानी है “ऐसा ही कर” या “कु़बूल फ़रमा”।
ये क़ुरआन शरीफ का शब्द नहीं है।
सूरह फ़ातिहा नमाज़ में पढ़ी जाने या नमाज़ के अलावा, इसके आख़िर में आमीन कहना सुन्नत है।
हज़रत इमामे आज़म का मज़हब यह है कि नमाज़ में आमीन आहिस्ता धीरे से या धीमी आवाज़ में कहा जाए।
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